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उत्तर देगा कौन?’ काव्य संग्रह की समीक्षात्मक लेख

‘उत्तर देगा कौन?’ काव्य संग्रह की समीक्षात्मक लेख"हम न पूज्य महान होना चाहते हैं। हम न तो भगवान होना चाहते हैं। है दिली ख़्वाहिश हमारी मात्र...

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" अतीत के दिन "

अतीत के दिन रनित अपने को ही अपने में नहीं देख पा रहा है। उसे दुनियाँ तो दुनियाँ रही उसे खुद अपने शरीर पर भी रत्ती भर भरोसा नहीं हो रहा था कि क्या...

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साकेत ( नवम सर्ग ) मैथिलीशरण गुप्त

 साकेत  ( नवम सर्ग ) दो वंशों में प्रकट करके पावनी लोक-लीला, सौ पुत्रों से अधिक जिनकी पुत्रियाँ पूतशीला; त्यागी भी हैं शरण जिनके, जो अना...

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सब बुझे दीपक जला लूँ ( महादेवी वर्मा )

 सब बुझे दीपक जला लूँ  ( महादेवी वर्मा )सब बुझे दीपक जला लूँ! घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ! क्षितिज-कारा तोड़कर अब गा उठी उन...

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पंथ होने दो अपरिचित ( महादेवी वर्मा )

पंथ होने दो अपरिचित  ( महादेवी वर्मा ) पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला घेर ले छाया अमा बन, आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह...

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कौन तुम मेरे हृदय में ( महादेवी वर्मा )

कौन तुम मेरे हृदय में  ( महादेवी वर्मा )कौन तुम मेरे हृदय में? कौन मेरी कसक में नित मधुरता भरता अलक्षित? कौन प्यासे लोचनों में घुमड़ घिर झरता...

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भारत माता ग्रामवासिनी ( सुमित्रानंदन पंत )

भारत माता ग्रामवासिनी ( सुमित्रानंदन पंत ) भारतमाता ग्रामवासिनी। खेतों में फैला है श्यामल धूल भरा मैला सा आँचल, गंगा यमुना में आँसू ज...

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मैं नीर भरी दु:ख की बदली ( महादेवी वर्मा )

मैं नीर भरी दु:ख की बदली ( महादेवी वर्मा )मैं नीर भरी दु:ख की बदली! स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रन्दन में आहत विश्व हंसा, नयनों में दीपक से जलते...

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राम की शक्ति पूजा (सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”)

राम की शक्ति पूजाप्रथम पृष्ठरवि हुआ अस्त; ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर आज का तीक्ष्ण शर-विधृत-क्षिप्रकर, वेग-प्रखर, शत...

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कामायनी (चिंता सर्ग ) जयशंकर प्रसाद

कामायनी (चिंता सर्ग )  हिम गिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह। एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह। नीचे जल था,...

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साहित्य का उद्देश्य (प्रेमचंद )

साहित्य का उद्देश्य (1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन लखनऊ में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण।) सज्जनो, यह...

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महाजनी सभ्यता ( प्रेमचंद )

महाजनी सभ्यता मुज़द: ए दिल कि मसीहा नफ़से मी आयद; कि जे़ अनफ़ास खुशश बूए कसे मी आयद। (हृदय तू प्रसन्न हो कि पीयूषपाणि मसीहा सशरीर तेरी ओर आ रहा है।...

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जीवन में साहित्य का स्थान

जीवन में साहित्य का स्थान साहित्य का आधार जीवन है। इसी नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटरियाँ, मीनार और गुम्बद बनते हैं लेकिन बुनियाद...

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साम्प्रदायिकता और संस्कृति ( प्रेमचंद )

साम्प्रदायिकता और संस्कृति (प्रेमचंद का यह प्रसिद्ध लेख पहली बार 15 जनवरी 1934 को प्रकाशित हुआ था, आज इसका अधिक से अधिक प्रसार पहले से भी ज्या...

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लीप सेकेण्ड ( इंदिरा दाँगी )

लीप सेकेण्ड खच्च् !! —मौत के अपराजेय जबड़े ने कौर भरा; अबकी एक आकर्षक युवा ज़िंदगी निवाला है। इंजीनियर गुलाल अपनी हालिया शुरू सॉफ्टवेयर कंपनी के...

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त्रिशंकु ( मन्नू भंडारी )

त्रिशंकु  की चारदीवारी आदमी को सुरक्षा देती है पर साथ ही उसे एक सीमा में बाँधती भी है। स्कूल-कॉलेज जहाँ व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास करते हैं, वही...

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सिक्का बदल गया ( कृष्णा सोबती )

सिक्का बदल गयाखद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरिया के किनारे पहुंची तो पौ फट रही थी. दूर-दूर आसमान के परदे पर लालिमा फैलती जा रही थी. शा...

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परिंदे ( निर्मल वर्मा )

परिंदेअँधियारे गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गई। दीवार का सहारा लेकर उसने लैंप की बत्ती बढ़ा दी। सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बेडौल फटी-फटी आकृति खींचने...

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रोज (अज्ञेय)

रोज दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते हुए मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो, उसके वातावरण में कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य,...

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उसने कहा था (चंद्रधर शर्मा गुलेरी )

उसने कहा थाबड़े-बडे़ शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बू क...

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