अतीत के दिन



रनित अपने को ही अपने में नहीं देख पा रहा है। उसे दुनियाँ तो दुनियाँ रही उसे खुद अपने शरीर पर भी रत्ती भर भरोसा नहीं हो रहा था कि क्या ये वही रनित है जो नदी के किनारे पर बैठकर घण्टों- हँसते-इठलाते हुए समय व्यतीत कर देता था, आज तो रनित एक -एक पल व्यतीत करने को न जाने कितनी बार खुद पर लज्जा का पानी उड़ेल चुका होता है।

रनित खुद को खुद के बनाए आशियाने में इस प्रकार घिरा हुआ पा रहा था आजकल, जिस प्रकार मकड़ी अपने ही घर में खुद को घिरा पाकर असहज महसूस करती है और धीरे-धीरे अपनी जिंदगी खत्म करने के लिए खुद ही जिम्मेदार बन जाती है। लेकिन रचित अपने जीवन को मकड़ी की भाँति अपने ही द्वारा बुने जाल में फँसाकर जाया नहीं करना चाहता है।

वो अपने जीवन में कुछ पाना चाहता है, अपने अतीत के मकानों को तोड़कर एक नयी मिशाल बनना चाहता था जो दुनियाँ के सामने एक नई नजीर बनें उससे लोग प्रेरणा लें, वो अपने जीवन को यूँ ही ख़त्म नहीं करना चाहता है। रनित अतीत के बंधनों से मुक्त होकर एक नया जीवन जीना चाहता है वो ये सब सोचकर अपने कदमों को जब-जब आगे बढ़ाता है तब-तब उसका अतीत उसके नए अरमानों के आढ़े आकर उसके अरमानों के राहो में आगे तटस्थ होकर खड़ा हो जाता है। रनित आगे बढ़ने के लिए अपने "हरादों को इतना दृढ-मजबूत करता है हिम्मत जुटाता है लेकिन महज एक अतीत के आगे वो एक कायर की तरह हथियार डाल देता है जैसे कोई योद्धा वर्षों से युद्ध अभ्यास कर रहा है और सामने एक महान योद्धा को देखकर बिना मुकाबला किए ही अपनी हार मान ले रहा हो।

रनित इतनी हिम्मत जुटाने के बाद भी बार-2 पीछे क्यों हट जा रहा वो जब-जब ये प्रश्न अपने-आपसे करता तो खुद को अथाह प्रश्न रूपी समंदर में न जाने कितने नीचे डूबा हुआ पाकर नाकामयाबी की उधेड़बुन में पाता जहाँ से वो छलाँग लगाने की हर कोशिश को असफल होता देख रहा था, उसे इन सब में जब कुछ सूझता कि वो करे तो क्या करे जब इन सब ख्यालों में अपने आपको रनित व्यस्त करने का मौका तलाशता खुद ब खुद रास्ता भटकर अपने अतीत की ओर निकल जाता है, जबकि उसको अपने अतीत में जाने का रास्ता भटकना चाहिए और वहाँ से भटककर जीवन की उमंगों रूपी दुनियाँ में जाना चाहिए था। लेकिन रनित अपनी जीवन साथी की राह जब-जब भूलने को नई तरकीब सोचता उसे हर तरकीब का कोई न कोई रास्ता उसके अतीत के दरवाजे के सामने जा खुलता जिससे परेशान रनित अपने आपको जिंदा लाश की भाँति ढोता हुआ पथ-पथ पर भटकता घूमता फिर रहा है लेकिन...

कोई पथ प्रबल ऐसा नहीं प्रतीत हो रहा था जिसपर चलकर वो अपने प्रण को पूरा कर सकता।

पथ प्रबल हो जाते पथ पर तो कुछ पुंज नए होते। नित नए आयाम नए होते गर कुछ अतीत-अतीत हो गए होते।।

अब देखना ये होगा कि आखिर रनित अपने आपको उन बंधनों में बांधकर घूमता रहेगा जो बंधन उसके हैं ही नहीं जो बंधन उसके लिए बने ही नहीं थे जिन बंधनों वो कभी बंधा ही नहीं था। फिर इन दो वर्गों के बंधनों में बंधा क्यों घूम रहा है आखिर कौन सी मर्यादा है जिसे वो तोड़कर आगे नहीं जाना चाहता है अगर उसका अतीत ही उसकी मर्यादा है तो उस अतीत को कभी उसको अपना समझा था क्या, अगर अपना समझा ही था तो अतीत इतना निर्दयी - निर्मम कैसे हो गया है जो रनित व्याकुलता को हृदय से स्मरण करता जा रहा है और रनित जीवन का एक-एक पल मर-मरकर जीने को मजबूर होता जा रहा है फिर भी उस अतीत के लिए जो अतीत कभी उसका होना ही नहीं चाहता था शायद!

गर्मी का मौसम कब गुजर गया रनित को पता ही नहीं चला उसने अपने आपको जैसे-तैसे सँभाल पाया तो रनित ही जानता है। कब सर्दी आई रनित को पता ही न चला।

आज पिछले दो सालों में पहला दिन था जब व रनित पूरी रात सोया था नींद कब आई उसे पता नहीं सुबह जब फोन पर रिंग बजी तब जाकर उसकी नींद टूटी फोन उठाकर देखा तो उसके बचपन का दोस्त अभिलाष का फोन था अभिलाष का फोन देखकर रनित अपने दोस्ती के अतीत की ओर मुड़ गया अचानक ही इतना और सोचने लगा वर्षों बाद अभिलाष का फोन क्यों आया सब कुछ सोचते ही सोचते ही फोन बजना बंद हो जाता है रनित काॅल लगाता है तब उसे पता चलता है कि अभिलाष दिल्ली से उसके शहर कानपुर वापस आया है तो उसने रनित का हाल चाल पूछने के लिए फोन लगाया था कहा और अब तो तेरे शहर में हूँ कब मिल रहे हो रनित ने मेज से चाय का प्याला उठाते हुए कहा जब चाहे तब मिल सकता है तूने तो वर्षों बाद आज याद ही कर लिया यही मेरे ऊपर मानों कर अहसान दिया चलो कोई बात नहीं चलो जल्द ही मिलते हैं इतना कहकर फोन कटा ही था रनित ने चाय का प्याला एक तरफ रखते हुए अपने दिमाग पर जोर पर डालने की कोशिश की लेकिन तब तक मन-मस्तिष्क से निकल चुका था और वो वही पुराने अतीत के पहाड़ों पर भ्रमण रूपी चहल कदमी कर रहा था आज जिस प्रकार का सुकून रचित को अपने दोस्त अभिलाष से बात करते वक्त मिला था उतना सुकून पिछले दो सालों में कभी भी नहीं मिल सका था।

जबकि दोस्त से बात करते वक्त भी रनित अतीत की ही दुनियाँ का सैर कर रहा था लेकिन इस अतीत में तो घबराहट नहीं थी बल्कि सुकून था जबकि इस अतीत के क्षण मात्र मे चैन और सकूँन या जिसे बयाॅ कर पाना रनित के बस की बात न थी और एक वो अतीत जिस अतीत ने रनित को पल-पल जीना मुश्किल कर रखा था।

रनित ने आज फैसला कर ही लिया था कि कुछ भी हो जाए वो आज सारी हदें तोड़ देगा और अपने अतीत को प्रतीत में बदल देगा या खुद को जीवन भर के बंधन से मुक्त कर देगा।

'उसका अतीत रुहिमा थी जिसे वर्षों पहले वो प्यार से रूही कहकर पुकारता था और रूही दौड़ती हुई उसके गले लग जाया करती थी तब दोनों को इस दुनियाँ की जरा भी ख़बर न थी कि दुनियाँ क्या सोचेंगी, क्या बोलेगी, क्या कहेगी हम दोनों के रिश्ते को, मेरा घर, परिवार, समाज स्वीकार कर पाएगा या नहीं ये सभी बातों से अंजान दोनों सिर्फ अपने आपको जानने पर ही अपना समय व्यतीत किए जा रहे थे किसी का डर था न किसी का भय था, भय था तो 'दूर होने का सा एक-दूसरे से दोनों को, समय ने क्या तय कर रखा किसी को नहीं पता था जिसका दोनों को डर नहीं था उसने डराया भी नहीं जिसको लेकर दोनों डरे हुए थे वही बात ने दोनों को वर्षों दूर कर रखा था।

आज रनित वही डर वही अतीत को अपने मुट्ठियों में लेकर उससे ही लड़ने जा रहा था उसे क्या पता था कि लड़ते वक्त उसे दोनों मुट्ठियाॅ खोलनी ही पड़ेगी

   शिवम यादव अन्तापुरिया

         कानपुर उत्तर प्रदेश